श्री दामोदराष्टकम्

श्री दामोदराष्टक स्त्रोत पद्म पुराण में नारद शौनकादि के संवाद में श्री सत्यव्रत मुनि के द्वारा कहा गया है। श्रील सनातन गोस्वामी कहते हैं कि यह स्रोत नित्य सिद्ध है और यह श्री दामोदर कृष्ण को आकर्षित करने में समर्थ है ।

मनुष्य को सत्यव्रत मुनि द्वारा कही गई दामोदराष्टक नामक प्रार्थना का नियमित पाठ करना चाहिए, जो भगवान दामोदर को आकर्षित करती है, और जिसमें भगवान दामोदर की पूजा का वर्णन है।
(श्री हरिभक्तिविलास 2.16.198)

(1)

नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानं यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं परामृष्टमत्यंततो द्रुत्य गोप्या ॥ १॥

जिनके कपोलों पर दोदुल्यमान मकराकृत कुंडल क्रीड़ा कर रहे हैं, जो गोकुल नामक अप्राकृत चिन्मय धाम में परम शोभायमान हैं, जो दधिभाण्ड (दूध और दही से भरी मटकी) फोड़ने के कारण माँ यशोदा के भय से भीत होकर ओखल से कूदकर अत्यंत वेग से दौड़ रहे हैं और जिन्हें माँ यशोदा ने उनसे भी अधिक वेगपूर्वक दौड़कर पकड़ लिया है ऐसे उन सच्चिदानंद स्वरुप, सर्वेश्वर श्री कृष्ण की मै वंदना करता हूँ ।

(2)

रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तम् कराम्भोजयुग्मेन सातङ्कनेत्रम् मुहुः श्वासकम्पत्रिरेखाङ्ककण्ठ स्थितग्रैवं दामोदरं भक्तिबद्धम् ॥ २॥

जननी के हाथ में छड़ी देखकर मार खाने के भय से डरकर जो रोते रोते बारम्बार अपनी दोनों आँखों को अपने हस्तकमल से मसल रहे हैं, जिनके दोनों नेत्र भय से अत्यंत विह्वल हैं, मैया यशोदा अपने लाला का हाथ पकड़ कर डांट रही हैं, रोदन के आवेग से बारम्बार श्वास लेने के कारण शंख की भांति त्रिरेखायुक्त कंठ में पड़ी हुई मोतियों की माला आदि कंठभूषण कम्पित हो रहे हैं, और जिनका उदर (माँ यशोदा की वात्सल्य-भक्ति के द्वारा) रस्सी से बँधा हुआ है, उन सच्चिदानंद स्वरुप, सर्वेश्वर श्री कृष्ण की मै वंदना करता हूँ ।

(3)

इतीदृक् स्वलीलाभिरानंदकुण्डे स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम् तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जीतत्त्वं पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे ॥ ३॥

जो इस प्रकार दामबन्धनादि-रूप बाल्य-लीलाओं के द्वारा गोकुलवासियों को आनंद-सरोवर में नित्यकाल सराबोर करते रहते हैं, और जो ऐश्वर्य सम्पूर्ण ज्ञानी भक्तों के निकट "मैं अपने ऐश्वर्यहीन प्रेमी भक्तों द्वारा जीत लिया गया हूँ" - ऐसा भाव प्रकाश करते हैं, उन दामोदर श्रीकृष्ण की मैं प्रेमपूर्वक बारम्बार वंदना करता हूँ ।

(4)

वरं देव! मोक्षं न मोक्षावधिं वा न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह इदं ते वपुर्नाथ गोपालबालं सदा मे मनस्याविरास्तां किमन्यैः ॥ ४॥

हे देव, आप सब प्रकार के वर देने में पूर्ण समर्थ हैं। तो भी मैं आपसे चतुर्थ पुरुषार्थरूप मोक्ष या मोक्ष की चरम सीमारूप श्री वैकुंठ आदि लोक भी नहीं चाहता और न मैं श्रवण और कीर्तन आदि नवधा भक्ति द्वारा प्राप्त किया जाने वाला कोई दूसरा वरदान ही आपसे माँगता हूँ। हे नाथ! मैं तो आपसे इतनी ही कृपा की भीख माँगता हूँ कि आपका यह बालगोपालरूप मेरे हृदय में नित्यकाल विराजमान रहे। मुझे और दूसरे वरदान से कोई प्रयोजन नहीं है।

(5)

इदं ते मुखाम्भोजमत्यन्तनीलैः वृतं कुन्तलैः स्निग्धरक्तैश्च गोप्या मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे मनस्याविरास्तामलं लक्षलाभैः ॥ ५॥

हे देव, अत्यंत श्यामलवर्ण और कुछ लालिमा लिए हुए चिकने और घुंघराले लाल बालों से आच्छादित तथा माँ यशोदा के द्वारा बारम्बार चुम्बित आपका मुखकमल और पके हुए बिम्बफल की भाँति अरुण अधर-पल्लव मेरे हृदय में सर्वदा विराजमान रहें । मुझे लाखों प्रकार के दूसरे लाभों की अर्थात वरों आवश्यकता नहीं है।

(6)

नमो देव दामोदरानन्त विष्णो प्रसीद प्रभो दुःखजालाब्धिमग्नम् कृपादृष्टिवृष्ट्यतिदीनं बतानु गृहाणेष मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः ॥ ६॥

हे देव! (दिव्यरूप वाले) हे (भक्तवत्सल) दामोदर! हे (अचिन्त्य महाशक्ति से युक्त) अनंत! हे (सर्वव्यापक) विष्णो! हे (मेरे ईश्वर) प्रभो! हे (परमस्वत्रन्त) ईश! मुझपर प्रसन्न होवें! मैं संसार दुःखसमूहरूप समुद्र में डूबा जा रहा हूँ। अतएव आप अपनी कृपादृष्टिरूप अमृतकी वर्षाकर मुझ अत्यंत दीन-हीन अज्ञ शरणागत पर अनुग्रह कीजिये एवं मुझे साक्षात् रूप से दर्शन दीजिये।

(7)

कुबेरात्मजौ बद्धमूर्त्यैव यद्वत् त्वया मोचितौ भक्तिभाजौ कृतौ च तथा प्रेमभक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ न मोक्षे ग्रहो मेऽस्ति दामोदरेह ॥ ७॥

हे दामोदर! जिस प्रकार अपने दामोदर रूप से (माता यशोदा के द्वारा) ओखल में बंधे रहकर भी (नलकुबेर और मणिग्रिव नामक) कुबेर के दोनों पुत्रों का (नारदजी के श्राप से प्राप्त) वृक्षयोनि से उद्धार कर उन्हें परम प्रयोजनरूप अपनी भक्ति प्रदान की थी, उसी प्रकार मुझे भी आप अपनी प्रेमभक्ति प्रदान कीजिये - यही मेरा एकमात्र आग्रह है। किसी भी अन्य प्रकार के मोक्ष के लिए मेरा तनिक भी आग्रह नहीं है ।

(8)

नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने नमो राधिकायै त्वदीयप्रियायै नमोऽनन्तलीलाय देवाय तुभ्यम् ॥ ८॥

हे दामोदर! आपके उदर को बाँधनेवाली महान रज्जू (रस्सी) को प्रणाम है। निखिल ब्रह्मतेज के आश्रय और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के आधारस्वरूप आपके उदर को नमस्कार है। आपकी प्रियतमा श्री राधिका के चरणों में मेरा बारम्बार प्रणाम है और हे अनंत प्रकार की अलौकिक लीला करने वाले आपको मेरा प्रणाम है ।